कैलास की गज़ल

 

नई   तारीख़  में     ताबीर-ए-ख़्वाब  लिक्खेंगे 
हरेक  ज़ुल्म  का   अब  हम  जवाब लिक्खेंगे 

बदी  के  दिल में   सदा   इज़्तिराब  लिक्खेंगे 
और  अच्छाई  के  हक़  में   सवाब  लिक्खेंगे 

नई  तरक्की   लिखेंगे  नये   समाज की  हम
हरेक  ज़ुल्मी   का    खानाखराब    लिक्खेंगे 

तुमने बर्ताव किया  जिस तरह  का जनता से
हम अपने दिल में वह  सारा हिसाब लिक्खेंगे 

तुमने  हड़पी है  कपट से  जो  हमारी  धरती
उसको  छुड़वा के  फिर से इंतखाब लिक्खेंगे

रहेंगे मिल के अब आपस में सारे मेहनतकश
सभी   के  वास्ते   दाना-ओ-आब   लिक्खेंगे 

तुम्हारा  आसमाँ  कदमों  में  होगा  धरती के
"हम अपने  खून से जब  इन्क़लाब लिक्खेंगे"

कैलाश मनहर 
 मनोहरपुर(जयपुर-राज)
पिनकोड-303104
 मोबा--946075740

 
 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ