पुष्‍पा की कविता

 सिखाया  मेरे  पापा  ने

गर्व  से  कहते  थे
मेरी  बेटी  नहीं  बेटा  है
अभिमान था मुझ पर
कहते थे मेरे  पापा
 
स्कूल  की गतिविधियों मे
खेलकूद, ड्रॉइंग, डान्स  मे
*सबसे  आगे  आना
सिखाया  मेरे  पापा  ने
 
घर  के  बहुत सारे काम
किताबों  पर  कवर,बाग लगाना
जानवरों  को खाना  पानी
सिखाया  मेरे  पापा ने

*
मंदिर  की पूजा-अर्चना, प्रसाद
आरती  का थाल  सजाना
कीर्तन पाठ, मंत्रों  का  उच्चारण
सिखाया  मेरे  पापा  ने

बड़ो  का आदर,सबका खयाल
धरती माँ  का  आदर, पेड पौधे
बाबा  दादी, सभी  की  सेवा
सिखाया  मेरे  पापा  ने

दीपावली  पर  घर  की  पुताई
आगन लिपाई,,रंगोली
स्वादिष्ट  व्यंजन
सिखाया  मेरे  पापा  ने

मकानों  के  नक्शे  बनाना
क्रिएटिविटी से  नयी  सोच
योजनाओं  का निर्माण
 सिखाया  मेरे  पापा ने

सब्र, प्यार, दया,ममता
हमेशा  हसते, खुश  रहना
हर  हाल  में  जीवन जीना
सिखाया  मेरे  पापा  ने

मुसीबत  से  नहीं  घबराना
संघर्षों  का  सामना  करना
कभी  हार  नहीं  मानना
सिखाया  मेरे  पापा  ने

दो  घरों  को  संभालना
जीवन  अनमोल  है
ईमानदार  बनना
सिखाया  मेरे  पापा  ने

कहती  थी  जब  पापा  से
सारे  सैलरी  खत्म  हो  जाती  है
मार्गदर्शन  करते ,खूब  कमाओ
सिखाया  मेरे  पापा  ने

आज  भी  आपके  आशीर्वाद से
खुश  हूं, मेरे  बच्चों  को  भी  सिखाती  हूं
पेसे वाले  नहीं, अच्छे इंसान  बनो
सिखाया  मेरे  पापा  ने

सब  कुछ  मिल  जाता  है
पापा  नहीं  मिलते  है
आशीर्वाद  देते  है
सिखाया  मेरे  पापा  ने

पिता पर  बेटी  का  अधिकार है
पापा  क्या  दोगे जन्मदिन  पर
सारे  जहान  की  खुशियां  छोड़
चले  गये मेरे  पापा

पूजा  करो, आदर  करो, साथ रहो,
पिता  के  बिना कुछ  नहीं
पापा  आ जाओ हम  अकेले  है

पुष्पा  शर्मा
अजमेर  राजस्थान


 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ