“ परिमार्जक प्रकृति ”
चलायमान सृष्टि को
गौर से देखो कभी
मंद -मंद सुरभित बयार,
सभी को प्राण वायु से भरती
दिनकर की प्रखर रश्मियांँ
सृष्टि को जीवंतता प्रदान करती ।
चढ़ते, उतरते चांँद से
शीतलता,
मृदुलता की शुभ वृष्टि,
हरी - भरी वसुंधरा जो
सभी का पोषण है करती
रंग-बिरंगे पांँखी,
मधुर तान सी छेड़ जाते
धरा में सृजन के
बीच बिखरा के
अपना कर्तव्य हैं निभाते
।
अवनि से तपन खींच
आर्द्र कणों में समेट
घने- घने मतवाले बादल
निरंतर जलचक्र बना,
जग पर छाते
प्यासी विकल धरा,
जीवन को
झर-झर झरती बूंँदों से
तृप्त कर जाते ।
प्रकृति को जब भी
गौर से देखा
उससे सिर्फ देना और
देना ही सीखा
प्रकृति से जाना
निरंतर दाता भाव से,
सृष्टि निर्माण ,पालन
और संचालन का
नित्य अद्भुत तरीका ।
जीवन जब-जब हर्षाया
सिर्फ यही समझ में आया
देने में जो सुख है ,
पाने में कब पाया
आज का सुविधाभोगी मानव
यह राज कहांँ समझ पाया ।
प्रकृति पर कहर ढा कर
अपनी सुविधाओं को सजाया
पेड़ ,जंगल काटे, कंक्रीट बढ़ाया
पक्षियों के घोसलों पर कहर बरपाया
जल,वायु,धरा,आकाश सभी जगह
रसायनों विषैले पदार्थों को मिलाया ।
कचरा तो साफ हुआ नहीं
अब मोबाइल, नए गैजेट्स
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों ने,
ई-वेस्ट का खतरा भी बढ़ाया
प्रकृति से खिलवाड़ कर के जनजीवन
नैसर्गिक से असमान्य बनाया!
जिस प्रकृति से सब कुछ मिलता है
उसकी तरफ हमारा
बड़ा फर्ज है ।
जिन नदियों ने धरा
व तन- मन में
प्रवाहित हो,
जीवन संचालित किया
व्यवसायीकरण एवं
गंदगी के पुजारी ,
स्वार्थी मानव ने
उन्हें भी डुबाने का
काम कर दिया ।
सृष्टि पर जो सुंदर रुप है
इसी जीवनदायनी
प्रकृति का स्वरुप है
सिर्फ पाने का इच्छुक
मानव करता उसे विद्रूप है
कब मानव पर्यावरण के
प्रति जागरूक होगा
फिर से वातावरण,
सुरम्य, शुद्ध
नैसर्गिक,प्रदूषण मुक्त होगा।
@अनुपमा 'अनुश्री '
साहित्यकार ,कवयित्री , एंकर,समाजसेवी
मोबाइल-887975029
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