पुनीता का लघुकथा कंजूसी की आदत

सूती साड़ी पर फॉल लगाती अम्मा जी ने बेटे अंकित को टोंक दिया, जो अपनी पत्नी रीमा से नया सोफ़ा खरीदने की बात कर रहा था।
"अरे अभी साल भर पहले ही तो लिया है, बिल्कुल नया है, बेकार पैसे बर्बाद क्यों कर रहा है। बेचारी गरीब रमिया की बेटी की शादी है कुछ मदद कर दे तो बड़ा पुण्य मिलेगा। कितने सालों से मन लगा कर काम करती है हमारे घर में।"
"अम्मा आप अपने काम से काम रखा करो,बहुत टोंका टांकी करती रहती हो। थोड़ा स्टैंडर्ड से रहना पड़ता है।आप तो बहुत कंजूसी से रहती हैं। पानी की कंजूसी के लिए कामवाली के साथ टोंका टांकी, बिजली की बचत के लिए एक कमरे में बैठने की हिदायत, पूरे दिन सब्जी ,दाल चावल से निकले गन्दे पानी को पौधों में डालने के लिए चक्कर लगाती रहती हैं।
इस साड़ी में फॉल लगा कर आंखे फोड़ने की क्या ज़रूरत है? पता नहीं क्यों पूरे दिन किच किच मचाने की आदत पड़ गई है।
हम दोनों कमाते हैं। बाबूजी की पेंशन आ रही है ।बढ़िया फ्लैट है, पर आप को तो वही ग़रीबी और कंजूसी में रहने की आदत है।"
बेटा बहू के सामने ही अम्मा जी को
झिडकियाँ देकर बाहर निकल गया।
अम्मा जी चुपचाप नज़र नीची कर साड़ी पर फॉल लगाती मन ही मन सोच रही थीं -
"तू नहीं समझेगा बेटा मैं कंजूस नहीं सबके लिए बहुत आगे तक की सोचती हूं।
पुनीता सिंह
दिल्ली
8447997023


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2 टिप्पणियाँ

Anuradha singh ने कहा…
बहुत ही रुचिपूर्ण परिदृश्य, यथार्थ पर आधारित और अत्यंत सुंदर अभिव्यक्ति, इस लघुकथा की लेखिका पुनीता दीदी को मेरा साधुवाद, आपकी कलम निरन्तर सृजन करती रहे। 🙏
Anuradha singh ने कहा…
बहुत ही रुचिपूर्ण परिदृश्य और यथार्थ पर आधारित विषय, इतनी सुन्दर लघु कथा के लिए लेखिका पुनीता दीदी को शुभकामनाएं, ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी कलम निरन्तर सृजन करती रहे। , ��