आज बरगद की पूजा करते हुए
प्रणाम किया उसे पिता की तरह !!
उसकी जड़ों को स्नेह से सिंचत किया
जज्बाती मन ने नम आखों से पूछा !!
पता नहीं कब ,कौन, क्यों काट दे
इसे अपने स्वार्थ से वशीभूत हो!!
और अगली बार पूजा की थाली ले
लौटना पड़े तुम्हें पथरीली जमीन देख !!
ढूंढ़ना पड़े पूजा के लिए डगाल या
पेड़ गमले में लगाने के लिए क्यों की ?..!
शायद हमारे पास जमीन नहीं होगी
बरगद,पीपल जैसे पेड़ लगाने के लिए !!
फिर भी एक संकल्प लेकर उठी में
पांच बरगद लगाऊंगी हर साल !!
फिर करुँगी पर्यावरण दिवस पर
उनकी पूजा.काटने वाले काटते रहें !!
किन्तु हमें बरगद पीपल लगाने के
अधिकार से बंचित नहीं कर सकते !!
रेखा दुबे
विदिशा, मध्यप्रदेश
89592 88001
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