विजयशंकर मिश्र की कजरी

 


डरपैं ब्रज के सब नरनारी, छाए गगन बिहारी ना।
छाए गगन बिहारी ना,छाए गगन बिहारी ना,
डरपैं ब्रज के सब नरनारी छाए गगन बिहारी ना।।

होइगै घटाटोप अँधियारा,नभ से ढरकै जल कै धारा,
धरती होइ गै नार पनारा डूबी नगरी सारी ना। 
डरपैं ब्रज के सब नरनारी छाए गगन बिहारी ना।।

बदरा गड़गड़ गड़गड़ गरजै,बिजुरी चमचम  चमचम चमकै,
पानी झमझम झमझम बरसै,हिम्मत सबकै हारी ना।
डरपैं ब्रज के सब नरनारी छाए गगन बिहारी ना।।

भितिया भरभराइ के बइठैं,कीरा बीछी घर में पइठैं।
गैया गौशाला में तड़पैं,बेबस ब्रज कै नारी  ना।।
डरपैं ब्रज के सब नरनारी छाए गगन बिहारी ना।।

पहुँचे जाइ नंद के द्वारे,रक्षा करो पुकारे रामा,
हरे रामा लकुटी कामरधारी बनि गै गिरिवरधारी ना।।
डरपैं ब्रज के सब नरनारी छाए गगन बिहारी ना।।


विजयशंकर मिश्र 'भास्कर'
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सुशांत गोल्फसिटी 226030
लखनऊ
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