सावन का महीना शुरू होते ही शिवालय तो भक्तों की भक्ति में रम गया। माधव मुहल्ले के मंदिर के आगे सुंदर फूलों की माला और ढ़ेर सारे बेलपत्रों से भरी टोकरी लिए खड़े हो जान गया कि यह महीना तो कम से कम चैन से गुजर जाएगा।
यह मुहल्ला भी तो बड़ा है इसीलिए यहाँ उस जैसे पूजा के लिए सामान बेचने के लिए कई फुलवालें खड़े रहते थे। शिवालय की ओर हाथों में पूजन साम्रगी से सजी थाली और चढ़ाने के लिए जल का कलश लिए कोई आता दिखता तो माधव भी दूसरे फूलवालों की तरह अपना सामान बेचने की चाह में उन्हें पुकारता, “आइये, महादेव के लिए बेलपत्र ले लीजिए। आइये, पुष्पदन्त की तरह नहीं बल्कि अपनी मेहनत की कमाई से पुष्प खरीद कर महादेव को प्रसन्न कीजिये।”
उसकी बात सुन तो कई उसकी यह बातें सुनकर हंसते हुए उसी से पूजा के बेलपत्र व फूल ले लेते।
आज अभी दो घण्टे हुए थे उसे मंदिर परिसर में फूलों को लाये कि एक बडी सी कार भी नजदीक आकर रुकी और उसमें से एक सज्जन पुरुष उतर मंदिर जाने लगे।
माधव उन्हें भी देख फूलों खरीदने के लिए बुलाने लगा तो वे सज्जन उसके नजदीक आये और बोले, “एक बात बता, इतनी मेहनत से इन फूलों और बेलपत्रों को तू लोगों के लिए लाया। तू नहीं चढ़ाएगा महादेव पर तेरी मेहनत के फूल ?”
उन सज्जन से सुन माधव चुप रहा फ़िर फीका हँसकर बोला, “महादेव बुलाते ही नहीं।”
“जा, बुला रहे हैं। मैं खड़ा हूँ तेरी टोकरी के पास। ले, तू भी चढ़ा आ तेरी मेहनत का सबसे सुंदर फूल।”, और सज्जन ने टोकरी में सबसे बड़ा गुलाब उठाकर उसे दे उसे जाने का इशारा किया।
माधव उन्हें देख अपने दोनों हाथ जोड़कर बोला, “आप .....”
“जल्दी, जल्दी मुझे ऑफिस भी जाना है।”, और वे सज्जन टोकरी में रखे फूलों को करीने से जमाने लगे और माधव तेजी से दौड़कर भक्तों की लंबी कतार में खड़ा हो गया।
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