लखि सावन सजनी विरह,साजन चतुर अपार।
प्रिय वियोग स्नेहिल प्रिया,मुदित नुपुर झंकार।।१।।
प्रियतम सजनी तरस को,हर्षित प्रिय मनुहार।
नूर बनी हमदम सजी,तनु सोलह शृंगार।।२।।
साजन सजनी सावनी,गाती प्रिय मल्हार।
आएगा प्रियतम सखा,देगा चारु दुलार।।३।।
भींगेगे मधुश्रावणी,रिमझिम हम बरसात।
पीऊँगी हमदम नशा, आलिंगन सौगात।।४।।
गाल गुलाबी चारुतम,कोमल किसलय गात।
सजन साथ झूला झुलें,मिलन बात शुभ रात।।५।।
सोमप्रिया शुभ चन्द्रिका,पूनम निशि चितचोर।
बदला लूँगी विरह की,बरसूँगी घनघोर।।६।।
सावन मनभावन बलम,कुंकुम प्रीतम साज।
सजन हाथ सिन्दूर से,सीथ सजाऊँ आज।।७।।
प्रणय बूंद स्वर नाद से,भींगू सारी रात।
बहूँ प्रीत बरखा गहन,रतिप्लावन प्रिय गात।।८।।
प्रत्युत्तर चातक युगल,किया विरह उपहास।
मधुशाला हाला प्रणय,साजन भरूँ मिठास।।९।।
भूकम्पन भूमिस्खलन,सावन वृष्टि प्रकोप।
आप्लावन प्रिय विरहिणी,लगा सजन आरोप।।१०।।
कर्तन तरु गिरि घाव सम,दे वियोग बहुबार।
पूछूँगी हिय बलम से,बोल विरह प्रतिकार।।११।।
नैन नशीली नज़र से,देखूँ क्यों न प्रणीत।
बीते वासन्तिक मधुर,आधा सावन बीत।।१२।।
देख विरह मन की व्यथा,बादुर स्वर उपहास।
घन घन रुनझुन बारिशें,सोच विरह अहसास।।१३।।
वैरी क्यों तुम साजना,बोलो दिलवर मीत।
देखो मेघा गा रहा,सावन कजरी गीत।।१४।।
बरसो बदरा झूम के,आया बालम मोर।
नृत्य गीत संगीत जल,भींगें रिमझिम शोर।।१५।।
प्रीत विरह देखा प्रिये,देख अश्क मृदु नैन।
तरसी सावन प्रेम रस,आन मिलो सखि चैन।।१६।।
कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नई दिल्ली
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