श्रावण मास शिव की आराधना और लोकमंगल का महीना-गीता

भगवान शिव हरी भोले का पवित्र श्रावण मास, जिसे सावन भी कहा जाता है, भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण माह है। यह मास लोकमंगल और जनकल्याण का प्रतीक है, और इसमें शिवभक्तों द्वारा किए गए कठिन व्रत, उपवास, और नियमों का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस माह में माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके भगवान शिव को पुनः प्राप्त किया था, जिससे इस मास का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।
पौराणिक मान्यताएँ और विश्वास
श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित है और ऐसा माना जाता है कि इस मास में भगवान विष्णु जब चार महीने के लिए निद्रा में चले जाते हैं, तो यह महीना भगवान भोलेनाथ के अधीन होता है। जन-जन की मान्यता है कि श्रावण मास भगवान शिव को सर्वाधिक प्रिय होता है, क्योंकि इसी महीने में उन्होंने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।
समुद्र मंथन और शिव का त्याग
पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला जो वह इतना शक्तिशाली था कि पूरी सृष्टि का विनाश कर सकता था। उस विष को संभालना किसी के बस में नहीं था, तब भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया। विष की तपिश को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने शिव पर जल चढ़ाया। तभी से ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव को जल चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
सावन माह की कथा
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा, तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्यागने से पहले, हर जन्म में महादेव को पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से जन्म लिया और सावन महीने में कठोर व्रत कर शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया। इसके बाद से श्रावण मास महादेव के लिए विशेष हो गया।
श्रावण मास का महत्व
 ऐसी मान्यता है कि श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा-आराधना करने से तुरंत फल की प्राप्ति होती है और मनुष्य के सभी पापों का विनाश होता है। यह माह सौभाग्य और शुभ फलदाई होता है। भक्ति और शक्ति का यह महीना उपासना और साधना का महीना है, जिसमें भगवान शंकर को प्रसन्न करना बहुत ही आसान होता है।भगवान शिव को आमतौर पर कई नामों से पुकारा और पूजा जाता है परंतु जनमानस में भगवान शिव को भोला बाबा कहा जाता है। भोलेनाथ यानी जल्दी प्रसन्न होने वाले हमारे महादेव। भगवान शंकर की आराधना और उनको प्रसन्न करने के लिए किसी विशेष साम्रगी की आवश्यकता ही नहीं होती है। भगवान शिव जल, पत्तियां और तरह -तरह के कंदमूल को अर्पित करने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते  हैं। देवों के देव प्रभु महादेव ऐसे अकेले देव हैं जो गर्भगृह में नहीं होते हैं। भगवान शिव अपने भक्तों का विशेष ध्याल रखते हैं वह अपनी जनमानस का जरा भी कष्ट नहीं देख सकते उनका दर्शन दूर से ही सभी लोग जिसमें बच्चे, बूढ़े, आदमी और महिलाएं सभी कर सकते हैं। भगवान शिव थोड़े से जल चढ़ाने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं।  हर हिंदू जनमानस को यह दृढ़ विश्वास है की श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा और आराधना करने से भक्तों को सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
गीता सिंह
बिलासपुर 

 


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