संजीव की वेदना


हर बार यही तो होता है, कैंडल भी जल-जल के चौराहों में रोता है।  
कौन सुनता है पुकार, बेटियां और बहनें हुईं हैं शिकार।  
यह घटना नहीं है कोई पहली बार,  
मन में डर का बीज, ये हालात ही तो बोता है।  
हर बार यही तो होता है...

कठिन परिश्रम और मेहनत से उस ऊँचाई को वह पहुँची थी,  
जीवन देने वाली, जीवन को तरसी थी।  
दुष्कर्मी पापी ने छुपकर ऐसा घात किया,  
रोई, चीखी, चिल्लाई, पर भाग्य ने भी न साथ दिया।  
उनकी पीड़ा का कोई अंत नहीं,  
इन हालातों में जो अपनों को खोता है।  
हर बार यही तो होता है...

तब तक ख़ौफ़ नहीं आएगा,  
हौसला उनका तो और भी बढ़ता जाएगा।  
कानून की आड़ में वो बच के निकल जाएंगे,  
गवाह-सबूत में अरसा गुजर जाएगा।  
क्यों न कैंडल की जगह चौराहों में जिंदा उनको जलाया जाए,  
और पापियों को मोक्ष कुछ इस तरह दिलाया जाए।  
वही मिलता है जीवन में, जो जैसा बोता है।  
हर बार यही तो होता है,
कैंडल भी जल-जल के चौराहों में रोता है।

संजीव अक्षर शर्मा
रायगढ़
9109794351



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