"आखिर क्यों"
गोधूलि बेला में,
काँपती दिये की लौ में,
दिखता है किसी का चेहरा....
कौन है वो,
मैं सोचता हूँ
बार बार ...लगातार
और इस क्षण में मैं
पहचानने की कोशिश करता हूँ
स्वयं के अस्तित्व को
कहीं यह मेरा प्रतिरूप तो नहीं
फ़िर, दिल सोचने को मजबूर होता है
मेरा प्रतिरूप मुझसे दूर क्यों
शायद नहीं,
ये तो तुम हो,
जो मुझसे दूर चली गयी हो......
क्यों..... "आखिर क्यों"
--"संतोष शर्मा साहिल
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