विजय मिश्र की कजरी

 

झूला पड़ा कदम की डारी,झूलैं सखियाँ सारी ना,
देखैं छिप छिपकै बनवारी,झूलैं सखियाँ सारी ना।

ललिता और बिशाखा झूलैं,राधा पेंग उछारैं रामा,
हरे रामा हुलसैं जमुना प्यारी,झूलैं सखियाँ सारी ना,
देखैं छिप छिपकै बनवारी,झूलैं सखियाँ सारी ना।।

चूड़ी सुघर माथ पै बेंदी हरिअर ओढ़नी फहरै रामा,
हरे रामा नैना चारु सिकारी,झूलैं सखियाँ सारी ना,
देखैं छिप छिपकै बनवारी,झूलैं सखियाँ सारी ना।।

नंदगाँव बरसाना झूलै घर घर टँगा हिंडोला रामा,
हरे रामा घिरी घटा मनहारी,झूलैं सखियाँ सारी ना,
देखैं छिप छिपकै बनवारी,झूलैं सखियाँ सारी ना।।

एक सखी अतिसय अनुरागी,धाई चढ़ी कपारे रामा,
दुसरी खड़ी मारि किलकारी,झूलैं सखियाँ सारी ना,
देखैं छिप छिपकै बनवारी,झूलैं सखियाँ सारी ना।।
विजयशंकर मिश्र 'भास्कर'
लखनऊ,
व्हाट्सेप 9450048158

 

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