गीता की कजरी

 

हरि-हरि बरखा भइल मतवारी, बढ़ल बेकरारी ए हरि।

गँउवा में रहनी त झूलवा झूलत रहीं, 

सखिया-संघतिया संग कजरी गवत रहीं।

हरि-हरि भींजे बदन रतनारी, आफत बड़ी भारी ए हरि।

हरि-हरि बरखा भइल मतवारी, बढ़ल बेकरारी ए हरि ।।


असो के सावन में पियवा के साथ बा, 

अंबर से धरती तक बरखा के नाच बा। 

हरि-हरि बरसे बदरिया त बूनिया परेला मोर अटारी ए हरि।

हरि-हरि बरखा भइल मतवारी, बढ़ल बेकरारी ए हरि ।।


सोरहो सिंगार अउरी होठवा प लाली,

केहू ना देखल नएका कनवा के बाली।

हरि-हरि झट से मोबाइल उठाईं,आ सेल्फी उतारीं ए हरि।

हरि-हरि बरखा भइल मतवारी, बढ़ल बेकरारी ए हरि।।


गरजे बदरिया त कड़के बिजुरिया, 

जुगनू जे चमके त होखे अंजोरिया।

हरि-हरि बेला फुलाए रात सारी, गमके फुलवारी ए हरि, 

हरि-हरि बरखा भइल मतवारी, बढ़ल बेकरारी ए हरि। 


गीता चौबे गूँज

बेंगलूर 



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