जब मैं छोटी थी बहुत ज्यादा सुन्दर नहीं थी। ऐसा लोग कहा करते थे। और ये सुन सुनकर मैं भी मानती थी की मैं सुन्दर नहीं हूँ । वैसे तो ईश्वर की कोई भी रचना खराब नहीं होती है। पर मैं जब भी किसी सुन्दर लड़की को देखा करती मन में एक टीस सी उठती और भगवान से शिकायत करती की हे भगवान आपने मुझे क्यों सुन्दर नहीं बनाया? बचपन से ही मुझे मैकअप करने का और डांस करने का बहुत शौक था। टीवी पर पिक्चर के हीरोइन के नृत्य देखकर करने की कोशिश करती। डांस अच्छे से कर लेती थी पर मेकअप के बारे में ज्यादा जानकारी ना होने की वजह से सबके हसीं का पात्र बन जाती। कोई गाइड करने वाला भी नहीं था.. और पापा को ये सारी चीजें पसंद भी नहीं थी जो भी करती छुप-छुप कर… और पापा को पता चलने पर डांट भी खाती। पापा कहते ये क्या कर रही हो ये सब काम नहीं आएगा पढ़ाई पे धयान दो।पर मेरे अंदर का डांसिंग और सुन्दर दिखने का कीड़ा कहाँ मरने वाला था।
ऐसा ही चलता रहा और धीरे धीरे स्कूल प्रोग्राम में बेहतरीन परफॉरमेंस देने लगी। चुकी मेरे पापा उसी स्कूल के टीचर थे तो प्रिंसिपल सर उनको बोला करते थे आपकी बेटी इतना अच्छा डांस करती है तो उसे पार्टिसिपेट करने दो. और वे प्रिंसिपल की बात टाल नहीं सकते थे।पर उनकी शर्त रहती थी मेरी पढ़ाई पे इसका प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए और मैं हां में सर हिला देती पढ़ाई करने के बाद डांस प्रैक्टिस करने जाया करती।12 तक ऐसा ही चलता रहा पर उसके बाद जिंदगी ने करवट बदली और शुरू हुई कैरियर बनाने की जद्दोजहद और मेरे सारे सपने दफ़न होने लगे।
मैं 12 पास करने के बाद DMLT ( मेडिकल प्रयोगशाला तकनीशियन में डिप्लोमा )करने के लिए भेज दिया गया। वहां पर मैंने देखा मैं उस संस्थान में सबसे छोटी थी । वहाँ सब स्नातक करने के बाद आये थे और परिपक्त थे। मुझे उनसे प्रतिस्पर्था करनी थी। मैं अपनी पढ़ाई में जुट गई। पर वहां काॅलेज के जैसा माहौल बनने लगा था। हर लड़का एक सुन्दर लड़की के पीछे। मुझे ये सब समझ नहीं आ रहा था की सभी सुन्दर लड़कियों के पीछे ही क्यों लट्टू हो जाते है? कहीं ना कहीं फिर से वो हीन भावना मन में आने लगी की मैं सुन्दर क्यों नहीं हूँ।
बहुत जल्द इस भावना से निकल पर मैं अपनी पढ़ाई पर फोकस करने लगी। पूरी तैयारी कर मनोयोग से परीक्षा दिया। सारे पेपर बहुत अच्छे हुए थे। लेकिन हॉं से जाते जाते अभी एक कार्यक्रम बाकी था जिसमें सभी बच्चों से पूछा जाता कि आप आने वाले बैच से क्या कहना चाहते हो। यह कार्यक्रम चल रहा था तो किसी ने कहा - की मैं बोलूंगा कि ''यहॉं की सबसे सुन्दर लकड़ी को अपना गर्लफ्रैन्ड बना लो और बदसूरत लड़की को अपनी बहन। इस वाक्य ने मुझे झकझोर के रख दिया क्योंकि वहां मैं ही थी जो किसी की बहन बनी थी.... मैंने सोचा क्या चेहरे की सुंदरता ही सब कुछ होता है क्या सीरत कुछ नहीं?
घर आने के बाद अकेले में खूब रोती और तब मैंने निर्णय किया की अब मैं अपने लुक और चेहरे की रंगत पर भी धयान दूंगी। फिर मैंने मधुरिमा में जो ब्यूटी टिप्स आते थे उसे पढ़ कर उसका प्रयोग अपने ऊपर किया करती थीा उस समय ना यूटियूब था और न आज के तरह सोशलमीडिया तेज। ब्यूटीपार्लर भी बहुत सम्पन्न एवं एडवांस परिवार के लोग ही जाया करते थे। तो अपनी सुंदरता निखारने के लिए घरेलू नुस्खों से ही काम चलाती थी।
अब कॉलेज में मुझसे प्राइवेट में बीएससी नहीं हो पाया। क्योंकि मुझे पैथ लैब का काम भी करना था। मजबूरी में मुझे बी0ए0 करना पड़ा इस भाग-दौड़ में मेरी हाॅवी जैसे कहीं दफ़न ही हो गयी। जो करना चाहती थी कर नहीं पाई। अब मेरे लिए रिश्ते की तलाश भी किया जाने लगा। पर फिर से सभी लड़के सुन्दर लड़की ही चाहते थे। गोरी छिट्टी.. और मैं सावली कद-काठी की लड़की उन्हें पसंद नहीं आती।जब कोई मुझे देखने आता और देख कर बाद में बताने को कहता तो मैं समझ जाती कि यहॉं भी मेरी सुन्दरता अवरोध बन रही है। किसे अच्छा लगता है अस्वीकार किये जाना।पर मैं कर भी क्या सकती थी ।
समय के साथ-साथ मेरा बी0ए0 पूरा होने को थाा और पैथलैब भी ठीक चल रहा था। एक दिन मम्मी-पापा के साथ कुछ मेहमान आये और मम्मी ने कहा ये तुम्हें देखने आये है। मैं कुछ ना बोल पायी । कठपुतली की तरह बस जो बोला करती गयी । चाय नाश्ता लड़के ने मुझे देखकर पसंद नहीं किया पर उनके मम्मी पापा को मेरी सीरत दिखी। घर पे लगे मेरे मैडल और कप और मेरा रूआब उन्हें पसंद आ गया। पर मैं अभी शादी नहीं करना चाहती थी । माँ ने अंदर आकर कहा ये रिश्ता तेरे लिए बहुत अच्छा है सभी शिक्षित हैं और सम्पन्न घराने से है ,मना नहीं करना है। मैं कुछ ना बोल पाई.. इसी के साथ हमारी शादी तय हो गयी और 15 दिनों के बाद का मुहूर्त भी निकाल दिया गया....।
शेष अगले अंक में........................
रेखा थवाईत
सारंगढ़ (छत्तीसगढ़ )
93031 22307
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