घनश्‍याम की गजल

 

आंख मिलाकर, नजरे झुकाकर, मुझमें समाकर कहां चले।
बरसों से सोई उस जज्बात को, तुम जगाकर कहां चले।।

आज तक कभी मचला नही था, मेरा दिल मेरे पास था ।
क्या लगाऊं इल्जाम तुम्हे की दिल चुराकर कहां चले ।।

सदके जावां वो मुस्कान तेरी, कितना मुकम्मल लगता है।
मुझे घायल कर गई, ऐसा मुस्कुराकर कहां चले।।

चाहता हुं लम्हा हसीन बनाना, बस तेरा दीदार हो जाए।
देखे बिना बेपर्दे मन को, खुद को छुपाकर कहां चले।।

सोचा नही था देख सकूंगा, दरिया-ए-इश्क में खुद को।
मस्ती-ए-मोहब्बत से बनी, आइना दिखाकर कहां चले।।

प्यास थी जिस लफ्ज़ की, सुनने को मेरे दिल की।
बेपनाह करदे वो अल्फाज, तुम सुनकर कहां चले।।

नहीं जानता रीति प्यार की , "श्याम" हु मै श्याम नहीं।
मस्ती की रानी राधा मुझे , दीवाना बनाकर कहां चले।।

घनश्याम यादव (शिक्षक)
मोबाईल नंबर - 9348567996
पता - देवभाेग, जिला गरियाबंद छत्तीसगढ़

 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ