लघुक‍था हम भी इंसान हैं-दीपा गुप्‍ता


 

मनसा- मां हमारे पास भी उस सेठ की तरह अच्छे-अच्छे कपड़े क्यों नहीं है? उनकी तरह बड़ी गाड़ी क्यों नहीं है?
मां -क्योंकि वह सेठ है और हम भिखा....
मनसा - भिखारी है तो..? ये कोई जात तो नहीं है।
मां- तू ऐसा ही कुछ समझ लें क्योंकि चाहे हम कुछ भी कर ले पर दुनिया तो हमें भिखारी कहकर ही संबोधित करेगी।
मनसा - पर क्यों? मेरा इतना अच्छा नाम है तो भिखारी ही क्यों बोलेंगी?

मां -क्योंकि हमारी पहचान नाम नहीं हमारा काम है।
मनसा - तो मैं हमारी पहचान को बदलूंगी और उस सेठ की तरह बनूंगी।फिर तूझे भी बड़ी वाली गाड़ी में घूमाऊंगी।मां, मैं सेठ के पास से आती हूं।
सेठ- मनसा को आता देखकर अपने जेब से पैसा निकाल रहा था।
मनसा - नहीं सेठ, मुझे पैसे नहीं चाहिए। मुझे बस जानना है कि तुम सेठ कैसे बने?ये महंगे-महंगे कपड़े, गाड़ी कैसे लिए..?”
सेठ- बहुत पढ़ाई-लिखाई करके इस मुकाम पर पहुंचा हूं।पर तू ये क्यों पूछ रही है?
मनसा -क्योंकि मुझे भी तुम्हारी तरह सेठानी बनना है।
सेठ- जोरों से हंसते हुए “ तू भिखारिन सेठानी बनेगी। अच्छा मज़ाक है। खाने के लिए तो हाथ फैलाए घूमते हो और सपने इतने बड़े-बड़े..।”
मनसा - हां, बनना है।पर तुम हंस क्यों रहे हो, सेठ?
सेठ - हां, हां बनना सेठानी, अपने सपने में। लल्लन इस भिखारिन को कुछ दे कर भगा।
मनसा - मेरा नाम मनसा है भिखारिन नहीं।
        और मां पास आकर बोली, वो सेठ अच्छा नहीं है। मैंने उसे बोला मुझे भी सेठानी बनना है तो हंसने लगा। मां मुझे भी पढ़ना है।
मां - मनसा की पढ़ने की इच्छा जान भावुक होकर उसके सर पर हाथ फेरते हुए सोचने लगी कि, यह कैसा सपना आंखों में सजा रही है।इस दुनिया ने हमें इतने बड़े-बड़े सपने देखने का हक़ नहीं दिया है।।
लल्लू - अपनी बहन का मन बहलाने के लिए धक्का गाड़ी लेकर आता है और मनसा को बैठने को बोलता है।
मनसा- उस सवारी में बैठ अपने परिवार के साथ कभी नहीं खत्म होने वाले राह पर‌ भीख की उम्मीद से चलने लगती है।
 
नाम- दीपा गुप्ता
पता-  कोलकाता, पश्चिम बंगाल

 

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