उम्र ही क्या है-संजीव

उम्र का क्या है, ढल जाएगी,
यह काया भी एक दिन बदल जाएगी।
जिस पर रंग-रोगन कर रहे हो तुम,
वह देह भी एक दिन जल जाएगी।

जो कमाया है तूने, यही का यही रह जाएगा,
संग तेरे तो बस तेरे कर्मों का हिसाब जाएगा।
धन-दौलत, रिश्ते-नाते, सब छूट जाएंगे,
तेरी पहचान को बस तेरे कर्म ही निभाएंगे।

दाहसंस्कार पर जुटेंगे सगे-संबंधी,
तेरी अंतिम यात्रा में "राम नाम सत्य है" गूंजेगी।
आँसू, सिसकियाँ, और थोड़ी देर का शोक,
फिर दुनिया अपनी रफ़्तार में डूब जाएगी।

दसकर्म, पिंडदान, तेरहवीं के कर्मकांड में,
धीरे-धीरे बीतेगा वक्त की रेत में।
दीवार पर तेरी तस्वीर माला से सजी,
बस यादों की परछाईं बन जाएगी।

वर्षों बाद, धुंधली हो जाएंगी बातें,
नए मेहमानों की हँसी भर देगी खाली जगह।
जीवन का यह अनवरत चक्र चलता रहेगा,
तेरे होने का एहसास भी कहीं खो जाएगा।

तो क्यों न आज ही कर ले तू वो काम,
जिससे जले दिलों में तेरा नाम।
दान, पुण्य, और नेक कर्म की रोशनी फैला,
इन्हीं के संग तुझे सच्चा मोक्ष मिलेगा।

जीवन एक यात्रा है, यह समझ ले साथी,
हर पल जी, हर रिश्ते को सहेज,
क्योंकि अंत में तेरे संग चलने वाली छाया,
तेरे अच्छे कर्मों की कहानी ही कहे।


संजीव अक्षर शर्मा
रायगढ़

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