कोई कभी मिला था ऐसा-कुलतार कौर कक्कड़



नेह नीर से भीगा भीगा
सुरभित कोमल कमल के जैसा
कोई कभी मिला था ऐसा।

कढ़ी धूप में छाया जैसा
रंग गुलाबी हल्का हल्का 
वाणी मधुर मधु सी मुखरित
और प्रेम रस छलका छलका 
नव विकसित गुलाब गुच्छों पर 
नवल ओस के झुरमुट जैसा
कोई कभी मिला था ऐसा।

प्रीत के किसी श्वेत निर्झर से
ऐसे जल कण बिखर रहे 
चन्द किरण के साए में ज्यों 
जूही चम्पा निखर रहे 
नन्दन वन के आम्र कुंज में
कुहू कुहू कोयल के जैसा
कोई कभी मिला था ऐसा। 

नदिया की लहरों की हलचल 
छेड़ रही कोई तराना
बरखा की पहली बूंदों सा 
समहित था संगीत सुहाना
धरा वक्ष पर बूंद से उपजी
उस सौंधी सुगंध के जैसा
कोई कभी मिला था ऐसा।

रूप वसन अरुणिम स्वर्णिम से
इंद्रधनुष सी झलके 
अमृत मदिरा झंकृत करती
उठती गिरती पलकें
थके पथिक की मधु निंद्रा में
प्रियतम स्वप्न सुहाने जैसा
कोई कभी मिला था ऐसा।

-कुलतार कौर कक्कड़
9977372032
भोपाल


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