मनीषा की गज़ल

 प्यार की बदली जिस पर बरसी, क्यूँ वो दिल सहरा निकला
क्या उम्मीद लगा रक्खी थी औ' क़िस्मत में क्या निकला

और नहीं था कुछ भी दिल में मैंने देखा बरसों तक
याद तुम्हारी जिसमें रहती है बस वो कमरा निकला

ऊपर वाले! भूल गया क्या हर सीने में रखना दिल
दिल के बदले इक सीने में पत्थर का टुकड़ा निकला

ख़्वाब मुबारक उन आँखों को हैं जिनकी तक़दीर में वो
मेरी आँखों में तो केवल अश्कों का दरिया निकला

मौत हुई जब मेरी उस पल भी थे तुम मुस्कान लिए
मान गई मैं दिल को तुम्हारे, उफ़ कितना पक्का निकला

इक दिन सुलझाने बैठी मैं अपने दिल की उलझन को
मेरे दिल का हर इक धागा बस तुमसे उलझा निकला

ख़्वाब तुम्हारे, याद तुम्हारी, हो अरमानों में भी तुम
सोच रहा है दिल ये 'शिखर' का, क्या मुझमें मेरा निकला

-मनीषा 'शिखर'
   (मोदीनगर)
9012574520


 

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