मैं हूं भारत की बेटी,बल के वेदी पर हूं चढ़ती,
पढ़कर इतिहास वीरांगनाओं की
हर- पल हूं जीती- मरती,
कैसे करूं उनके त्याग बलिदान का पश्चाताप?
हरदम यही सोचती हूं,
लेकर तलवार कलम का मैं शब्द वेदना को कुरेदती हूं।
मैं हूं भारत की बेटी,
हर पल हर क्षेत्र में हूं सेवा देती,
समाज की कुरीतियों -रूढ़ियों से खुद को बचाती,
देश का हो उत्थान ऐसा कार्य कर जाती,
गद्दारों ,दुश्मनों का करती संर्घार,
लेकर दुर्गा -:काली मां का अवतार।
मैं हूं भारत की बेटी,
देश हित के लिए मरती - मिटती,
जौहर का लेकर संकल्प,
दुश्मनों को नहीं देती विकल्प,
ऐसे ओज से स्वयं को भरती हूं,
वीरांगनाओं का हरदम स्मरण करती हूं,
देख के अपने शक्ति को
साहसी बेटी बनती हूं।
मैं हूं भारत की बेटी,
मौत की चिता पर हूं लेटी,
देश हित की बातें सोचती हूं
अगर आंख दिखाएं कोई,
उन गद्दारों के आंखों को नोचती हूं,
हरदम सेवा में खुद को तत्पर रखती हूं,
मैं हूं भारत की बेटी
भारत मां के गोद में सदैव लेटी।
स्वरचित रचना
ज्योति राघव सिंह
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
वर्तमान पता- (लेह लद्दाख)
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