आज वही पीड़ा फिर पहले जैसी है
तन्हाई में उलझन पहले जैसी है
करवट में कटती रातें अब भारी हैं
हालत फिर बेचारे वाली जैसी है..।।
हर आहट उम्मीदों वाली लगती है
पायल की झंकार सुहानी लगती है
चौखट पर तकती आँखें लालायित हैं
बातें फिर जज़्बातों वाली जैसी है..।।
सुख-दुःख का साथी फिर कोई अपना है
मन को बहलाता फिर कोई सपना है
मगन मयूरा बन कर मन फिर नाच रहा
प्रेम में पागल वाली हालत जैसी है..।।
रूप आज फिर निखरा-निखरा लगता है
देख आईना खुद शर्माने लगता है
बहकी-बहकी बातें अक्सर होती हैं
रोग दीवाने वाली अब तो जैसी है..।।
पल-पल में अब हंसना और फिर रोना है
कुछ पाना है और फिर कुछ से खोना है
जीत-हार और हार-जीत ही जीवन है
अपनी हालत इसी कहावत जैसी है..।।
अपनी हालत इसी कहावत जैसी है..।।
~ विजय कनौजिया
ग्राम व पत्रालय-काही
जनपद-अम्बेडकर नगर-224132
(उत्तर प्रदेश)
मो0-9818884701
Email- vijayprakash.vidik@gmail.com
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