सारे जग से काज बड़े-कन्‍हैया

~त्रिभंगी छंद

मातु पिता सेवा, मंगल मेवा, सारे जग से, काज बड़े।
जीवन के दाता, अंतर नाता, सारी दुनिया, पैर पड़े।।
माता की ममता, सब पर समता, नेह लुटाती, नैन रखे।
पिता पूज्य पावन, नेक विभावन, जहाँ थमे पग, बने सखे।।

गुरू जनक जननी, सब हितकरणी, प्रथम पूज्य से, पुण्य बढ़े।
आदर अधिकारी, अति उपकारी, अपने हाथों, हमें गढ़े।।
मोल नहीं लेते, सबकुछ देते, कुंदन जैसे, स्वर्ण खरा।
अब हाथ बढ़ाओ, अपनें आओ, देखभाल कर, अमित जरा।।

जो राह दिखाई, करी भलाई, तेरे हित में, त्याग बड़ी।
मत अकड़ दिखाना, शीश झुकाना, सोच समझ अब, एक घड़ी।।
धन आनी जानी, बहता पानी, अंत शून्य  सब, हाथ मले।
तज कथन पुरानी, बंद कहानी, शुभारंभ नव, मिला गले।।

ये बूढ़ी काया, देगी छाया, भले फूल फल, दे न सके।
सूना घर सारा, बनो सहारा, परदेशी आ, नैन तके।।
आ निकट हमारे, राज दुलारे, आँख मोतिया, शूल बढ़ा।
क्यों रहें अकेले, कितना झेलें, थमती साँसें, धूल चढ़ा।।

सर्जक- कन्हैया साहू 'अमित'
शिक्षक- भाटापारा छत्तीसगढ़
चलभाष- 9200252055


 

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