राष्‍ट्रीय महिला दिवस की कविताएं

कविता :-(भारत की नारी )
सुन भारत की नारी तू मत बनना बेचारी।
हार मान ना लेना तू तेरी जंग अभी है जारी।
फूल नहीं बनना है तुझको, तुझको पत्थर बनना है।
कांटो भरी है राहे तेरी,
जरा संभल कर चलना है।
छुना पाये कोई भी तुझको बन जा एक चिंगारी।
सुन भारत की नारी तू मत बनना बेचारी हार मान ना लेना तु,
तेरी जंग अभी है जारी।
आगे बढ़ते रहना जग में हाथ थाम के हिम्मत का।
अपने हुनर को आगे बढ़ा के रुख मोड़ दे किस्मत का।
अबला नहीं तू सबको बता दे,सब पर है तु भारी।
सुन भारत की नारी तू मत बनना बेचारी।
हार मान ना लेना तू तेरी जंग अभी है जारी।
लक्ष्मीबाई सी वीर तू बनना। फूलन जैसी निडर बनना।
बनकर के किरण बेदी देश का नाम रोशन करना।
उड़न परी तू पीटी उषा भर ले आज उड़ान री।
सुन भारत की नारी।
तू मत बनना बेचारी।
हार मान ना लेना तू तेरी जंग अभी है जारी।।
 माधुरी सिंह
 पटना,बिहार
7488297438


नारी की पहचान
भ्रमित होती हो पल-पल, क्यों अपनी शक्ति पहचानती नहीं
तुम हो गार्गी- अपाला की वंशज, क्यों खुद को मानती नहीं
भटक रही इधर उधर तुम , बिसरा अपना मूल स्व-अस्तित्व
तुम हो शक्ति विद्या स्वरूपा,क्यों अपनी शक्ति को जानती नही।

तुम हो ध्वजा धर्म संस्कृति की, संस्कारों को अपने मानो
पैंतीस टुकड़ों में न बंट पाओ, हाथ परिवार का तुम थामो
याद रखो सदा हृदय में, पद्मिनी,रानी हांडा का बलिदान
बहो प्रेम में भले प्रतिपल पर,कुल गौरव मस्तक पर धारो।

पापा की परियों तुम्हें लूटने, जग में चल रहा प्रपंच विकट
रहो सजग-सावधान तुम, अन्तस् का साहस करो प्रकट
रानी लक्ष्मी का साहस उर में,शील रखो तुम जनक सुता सा
ओतप्रोत रहो सूर्य-रश्मि सी,देख के तुमको टल जाये संकट।

तुम जननी हो शूरवीरों की,तुम बात ये  क्यों भूल जाती हो
वीर शिवा की जन्मदात्री ,जीजाबाई से प्रेरणा क्यों न पाती हो
राम को श्री राम बनाने वाली, माता कौशल्या की तुम हो वंशज
अपने शक्ति के गौरव को,भूल  तुम स्वंय को क्यों भटकाती हो।

देश, समाज, परिवार निर्माण में, तुम अपनी भूमिका पहचानो
स्त्रीत्व गुणों को करो पोषित, स्व को नवनिर्माण की वाहक मानो
बनो रीढ़ तुम सकल सृष्टि की , न  आओ किसी  बाहरी बहकावे में
बना स्वयं को काली,दुर्गा,लक्ष्मी , सदगुणों से धरा को सुरभित जानो।।
आशा झा सखी
जबलपुर (मध्यप्रदेश


शीर्षक -वर्तमान नारी की झलक
सदियों से रुढ़ियों के पर्दो में ढ़क कर जिसे रखा,
आज वो समाज के इस पर्दे को हटाने आयी है,
डरी,सहमी ,नासमझ स्त्रियों के दिल का बोझ
वो आशा बनकर मिटाने आयी है,
अपनी ताकत से गांव ,शहर ही नहीं देश में भी जागरूकता लायी है,
आज नारियों के कार्यों के चर्चा से सबके चेहरे पर हरियाली छाई है,
हाँ है ये भी सत्य की पूरी तौर पर सुरक्षित नहीं है नारीयाँ,
पर वह हर राह पर इस जमाने को आजमाने आयी है,
कर कितना भी बुरा उनका , वह फिर भी अपने कोख में तुझे नौ महीने पालने आयी है,
लगा आग तू उनकी दुनियां में,वो दुल्हन बनकर तेरी दुनियां बसाने आयी है,
तेरे आँगन को बेटी रूपी पुष्प बनकर महकाने आयी है,
जिस हाथ से तू कर रहा दुष्कर्म,
उस हाथ को बहन बनकर राखी से सजाने आयी है,
दुःशासन बनकर फैला तू दहशत,
वो द्रोपदी बनकर तुझे थकाने आयी है,
जिसकी इज्जत, मर्यादा को कर रहा सरे आम नीलाम ,
वो तेरी कूल के मर्यादा को बचाने आयी है,
नारी से है नर न कि नर से नारी ,
समाज की इस भ्रम को आज मिटाने आयी है,
अपना हक तुझसे मांगने नहीं ,
बल्कि तुझे वह तेरा हक दिलाने आयी है।
ज्योति राघव सिंह
वाराणसी (उत्तर प्रदेश
भारतीय महिला दिवस पर----

 

 ★गीतिका★

झूले सा नारी का जीवन, इस पार कभी उस पार कभी।
गैरों से मिलता प्यार कभी, पर अपनों की दुत्कार कभी।

जो उसे खिलौना समझ रहे, अपनी आँखें खोलें, देखें,
वह कभी शक्ति का रूप धरे, जा रही गगन के पार कभी।

वह कोमलांगी कहलाती, पर कभी वज्र बन जाती है,
ममता की मूर्ति कभी दिखती, वह ले लेती तलवार कभी।

बन जाती कभी सयानी वह, हो जाती कभी दिवानी वह,
तन-मन-धन लेती छीन कभी, तन-मन-धन देती वार कभी।

उसका अदम्य साहस देखो, युद्धक विमान लेकर नभ से,
कर भारत की जयकार कभी, दे दुश्मन को ललकार कभी।

जब आन-बान पर आ जाती, रणचण्डी वह बन जाती है,
वह कभी शत्रु को क्षमा करे, कर देती है संहार कभी।

नारी तो कुल की मर्यादा, नारी पूजित नारी पावन,
वह युग-कुल  गौरव बने कभी, जग में होती जयकार कभी।

ओम जी मिश्र 'अभिनव'

शोभारामदाँगी  "राष्ट्रीय महिला"
दिवस       "नारी महिमा"


नारी लक्ष्मी रूप है,
नारी मां का रूप है।
नारी सीता सावित्री ,
नारी क्षितिज सरूप है।।
             सती शिवा अर्धांगिनी
,
             गंगा जमुना रूप है ।
             सरस्वती स्वर ताल की,
             नारी देवी रूप है ।।
नारी राधा रूक्मणि ,
नारी शारद रूप है ।
नारी ही मां नर्मदा ,
गंगा सम अनुरूप है ।।
              नारी लक्ष्मी बाई है ,
              अष्टधारिणी रूप है ।
            
 नारी अवंती बाई है,
              पद्मिनी का रूप है ।।
नारी घर की आन है ,
नारी धरा सरूप है ।
वेद शास्त्रों ने गाया ,
नारी माया रूप है ।।
              नारी का सम्मान ही,
             घर में पूजा धाम है ।
             नारी से संतानसृष्टि ही,
             नारी कुल का रूप है ।।
नारी से सृष्टि बढे,
नारी बिन सब शून्य है ।
महिला ही इस राष्ट्र की,
"दाँगी" के अनुरूप है ।।
              आन बान ये शान है,
              नारी देवी रूप है ।
              घर में दीपक लाए जो,
              नारी सूरज चांद है ।।
नारी रचनाकार है ,
नारी सुख का कूप है ।
नारी से संसार बना है,
नारी बारिस धूप है ।।
             नारी तेज उड़ान है,
             नारी गहरा कूप है ।
             नारी बिन सूना लगे,
             नारी उज्ज्वल धूप है ।।

मौलिक रचना
शोभारामदाँगी "इन्दु"नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)
मोबा०=7610264326

कविता :-
विडम्बना


स्त्री यदि हां में हां मिलाए तो
सीधी है, गाय है मतलब बेवकूफ है,
यदि कहीं विरोध करे तो
बहुत बतमीज है, बदमाश है,

स्त्री यदि अपने मुताबिक चले तो
अपने को बहुत होशियार समझती है,
यदि किसी के कहे पर चले तो
मूर्ख है, उसके पास दिमाग नहीं है,

वह यदि कहीं आए-जाए नहीं तो
घर में ही घुसी रहती है, सामाजिक नहीं है,
यदि बाहर आए-जाए तो
घुमक्कड़ है, घर में पैर टिकते ही नहीं हैं,

यदि वह गृहिणी है तो
नौकरी करना उसके बस की नहीं है,
यदि वह नौकरीपेशा है तो
घर संभालना उसके बस की नहीं है,

बात सिर्फ ये नहीं है कि
ये धारणाएँ इस समाज की है,
अफसोस तो इस बात से है कि
ये धारणाएँ इसी समाज की महिलाओं की भी है ।
ये कैसी विडम्बना है... ?
सुधार कहाँ-कहाँ जरूरी है, विचार करें।

--पूनम झा 'प्रथमा'
  जयपुर,राजस्थान 


 


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