प्यार का में बटोही-रवेन्‍द्र



प्यार का मैं बटोही अकिंचन प्रिये।
तुम्हीं ने दिया जो लुटाया उसे।।

निकट जान शशि से मिलन की घड़ी।
कुमिदिनी लिए रात सकुची खड़ी।।
तुम्हारे करों ने सजाया उसे।
प्यार का मैं बटोही अकिंचन प्रिये।।

हुआ प्रात कलिका चटकने लगी।
उषा लालिमा ले मटकने लगी।।
तुम्हारी हॅंसी ने हॅंसाया उसे।
प्यार का मैं बटोही अकिंचन प्रिये।।

पवन बह रही है भॅंवर डोलती।
उदधि के उदर पर लहर खेलती।।
तुम्हारी खुशी ने नचाया उसे।
प्यार का मैं बटोही अकिंचन प्रिये।।

गगन तृप्त है तृप्त है सब मही।
कहीं से तभी मेघ माला बही।।
तुम्हारी उमस ने बुलाया उसे।
प्यार का मैं बटोही अकिंचन प्रिये।।

नहीं बाॅंस की बाॅंसुरी तान दे।
कहाॅं से मिले स्वर कहाॅं गान दे।।
तुम्हारे स्वरों ने बजाया उसे।
प्यार का में बटोही अकिंचन प्रिये।।

रचनाकार -रवेन्द्र पाल सिंह'रसिक'
स्थान -मथुरा (उ .प्र.)
मोबाइल नम्बर 8077336199
रवेन्द्र पाल सिंह, रसिक,
जिला -मथुरा (उ.प्र.)


 

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