फिर से आई ऋतुराज बसंत,
धरती पर लाई नया वसंत।
पीली सरसों खेतों में लहराए,
कोयल मीठे गीत सुनाए।
फूलों की गंध हवाओं में छाए,
तितली पंख पसार मुस्काए।
अमवा की बौर महकती आई,
हर्षित हरियाली मुस्कुराई।
होली के रंग लिए संग अपने,
हर दिल में उमंग भरे सपने।
शीत का पतझड़ बीत चला,
जीवन में नवस्फूर्ति खिला।
आओ स्वागत करें इस ऋतु का,
खुशियों से भर दें जीवन पथ का।
ऋतुराज की महिमा है न्यारी,
बसंत में खिली प्रकृति हमारी।
डॉ प्रभात पांडेय
भोपाल, मध्यप्रदेश
831 919 2740
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