रणभूमि में अर्जुन के सारथी संत बने हैं,
मामा कंस के जीवन का बस अंत बने हैं,
देवकी की कोख से हुआ जिनका जन्म
अधर्म का नाश कर "श्याम" भगवंत बने है।
जिन्हें देख राधा बेसुध हुई थी,
निस्वार्थ दिव्य प्रेम मन में संजोई थी,
बावरे मनोहर का हाल भी यही था
अँखियाँ तो उनकी भी राधा में खोई थी।
मनभावुक कर दे जिनकी दोस्ती की मिशाल,
"कृष्ण" द्वारका के राजा सुदामा के खराब हाल
गरीबी देख मित्र की अश्रु से उनके चरण पखारे,
भेंट दिये दो लोक कहते जिन्हें यशोदा के लाल।
स्वरचित एवं मौलिक
स्वीटी जैन 'दिल से'
शाहगढ जिला सागर मध्यप्रदेश
मोबाइल न. 8223054504
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